सूर्य की सात, गणेशजी की तीन और शिवलिंग की आधी परिक्रमा करनी चाहिए

घर में सुख-शांति और समृद्धि बनाए रखने के लिए पूजा-पाठ करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा की संख्या अलग-अलग होती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार आरती और पूजा-अर्चना आदि के बाद भगवान की मूर्ति के आसपास सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है, इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए परिक्रमा की जाती है। पं. शर्मा के अनुसार जानिए किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए।


शिवजी की आधी परिक्रमा की जाती है। देवी मां की तीन परिक्रमा की जानी चाहिए। भगवान विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। श्रीगणेशजी और हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है।


परिक्रमा करते समय ये बातें ध्यान रखें


पं. शर्मा के अनुसार परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए। परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी। ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती। परिक्रमा करते समय मंत्रों का जाप करना चाहिए। अपने इष्टदेव के मंत्रों का जाप करें। किसी से बातचीत कतई ना करें। इस प्रकार परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ मिलता है।


इस मंत्र के साथ करें देव परिक्रमा


यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।


तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।


इस मंत्र का सरल अर्थ यह है कि जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें।


दाहिने हाथ की ओर से शुरू करनी चाहिए परिक्रमा


परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ की ओर से शुरू करनी चाहिए, क्योंकि प्रतिमाओं में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। सीधे हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर हम मूर्तियों के आसपास रहने वाली सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण कर पाते हैं। मन को शांति मिलती है और नकारात्मकता दूर होती है। दाहिने का अर्थ दक्षिण भी होता है, इस वजह से परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है। अगर प्रतिमा के आसपास परिक्रमा करने का स्थान नहीं है तो एक ही जगह पर गोल घूमकर भी परिक्रमा की जा सकती है।